Saturday, March 15, 2025

वेदों में ‘संस्कृत’ शब्द का उल्लेख, भाषा विकास एवं वैदिक ध्वनि विज्ञान

 

वेदों में ‘संस्कृत’ शब्द का उल्लेख, भाषा विकास एवं वैदिक ध्वनि विज्ञान

वेदों में ‘संस्कृत’ शब्द का उल्लेख, भाषा विकास एवं वैदिक ध्वनि विज्ञान

भारतीय वैदिक परंपरा में भाषा को केवल संवाद का साधन नहीं माना गया, बल्कि इसे ब्रह्मांडीय ऊर्जा का रूप माना गया है। वेदों में भाषा को ‘वाक्’ के रूप में निरूपित किया गया, जो श्रुति परंपरा का आधार रही। परंतु यह प्रश्न उठता है कि क्या वेदों में ‘संस्कृत’ शब्द का कोई उल्लेख मिलता है? यदि नहीं, तो संस्कृत भाषा का उद्भव कैसे हुआ?

वैदिक भाषा

1. वेदों में ‘संस्कृत’ शब्द का उल्लेख

1.1 वेदों में भाषा के लिए प्रयुक्त शब्द

यद्यपि वेदों में ‘संस्कृत’ शब्द का कोई प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है, किंतु वेदों में भाषा के लिए निम्नलिखित शब्द मिलते हैं—

  • वाक् (वाणी) – ब्रह्मांडीय ध्वनि का स्रोत।
  • श्रुति – सुनी गई ज्ञानधारा।
  • ध्वनि – ब्रह्मांडीय नाद।
  • शब्द ब्रह्म – शब्द को ब्रह्म के रूप में निरूपित किया गया।

1.2 वैदिक भाषा के स्तर

वेदों में भाषा को चार स्तरों में विभाजित किया गया है—

  1. परा – सूक्ष्मतम ध्वनि, जो चेतना में स्थित होती है।
  2. पश्यन्ती – अंतर्ज्ञान से ग्रहण की जाने वाली भाषा।
  3. मध्यमा – मानसिक स्तर पर अभिव्यक्त भाषा।
  4. वैखरी – स्पष्ट रूप से उच्चारित शब्द।
ऋग्वेद 1.164.45
चारि वाक् परिमिता पदानि, तानि विदुर्ब्राह्मणाः ये मनीषिणः।
(वाणी के चार रूप हैं, जिनका ज्ञान केवल मनीषी ब्राह्मणों को होता है।)
ऋग्वेद

2. वैदिक भाषा का स्वरूप एवं विकृति

2.1 वेदों की भाषा एवं ध्वनि विज्ञान

वेदों की ऋचाएँ किसी लिपिबद्ध भाषा में नहीं थीं, बल्कि यह दिव्य ध्वनियाँ थीं जिन्हें ऋषियों ने श्रुति परंपरा से ग्रहण किया।

यजुर्वेद 36.3
वाङ् मेऽस्मि वाचा मे देवाः संवदन्तु।
(मैं स्वयं वाणी हूँ, और मेरे माध्यम से देवता संवाद करते हैं।)

इससे स्पष्ट होता है कि भाषा केवल मानव निर्मित नहीं थी, बल्कि यह ब्रह्मांडीय ऊर्जा से प्रकट हुई थी।

2.2 भाषा की विकृति और पाली-प्राकृत का जन्म

जैसे-जैसे समय बीता, वैदिक भाषा का उच्चारण परिवर्तित होने लगा, जिससे भाषाओं में भिन्नता उत्पन्न हुई। वैदिक संस्कृत से उत्पन्न कुछ प्रमुख भाषाएँ इस प्रकार हैं—

  • पाली – बौद्ध ग्रंथों की भाषा, जो अधिक सरल थी।
  • प्राकृत – जैन एवं लोकभाषा के रूप में विकसित।
  • अपभ्रंश – मध्यकाल में विकसित जनभाषा।
अथर्ववेद 19.71.1
एकं वाचः विप्रा बहुधा वदन्ति।
(एक ही वाणी को ज्ञानी लोग भिन्न-भिन्न रूपों में व्यक्त करते हैं।)

यह मंत्र स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि मूल भाषा से समय के साथ कई रूप उत्पन्न हुए।

अथर्ववेद

3. संस्कृत भाषा का व्यवस्थित स्वरूप एवं पाणिनि की भूमिका

3.1 संस्कृत भाषा का नामकरण और उसका अर्थ

‘संस्कृत’ शब्द वेदों में प्रत्यक्ष रूप से नहीं मिलता, किंतु इसका अर्थ ‘सुसंस्कृत’ या ‘सुव्यवस्थित भाषा’ से लिया जाता है। यह शब्द वैदिक काल के बाद व्यवस्थित रूप से विकसित हुआ।

संस्कृत शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार की जाती है—

  • सं + कृ (धातु) = संस्कृत, अर्थात् ‘संपूर्ण रूप से परिष्कृत भाषा’।

3.2 पाणिनि और संस्कृत का व्याकरणीय आधार

संस्कृत का व्यवस्थित रूप पाणिनि (ईसा पूर्व 5वीं-4वीं शताब्दी) के अष्टाध्यायी ग्रंथ से मिलता है। इसमें उन्होंने भाषा को अत्यंत वैज्ञानिक तरीके से व्याकरणीय नियमों के अनुसार व्यवस्थित किया।

पाणिनीय अष्टाध्यायी 1.1.1
वृद्धिरादैच्।
(स्वरों की वृद्धि कैसे होती है, इसका नियम।)

पाणिनि के बाद कात्यायन और पतंजलि ने महाभाष्य लिखा, जिससे संस्कृत का स्वरूप और दृढ़ हुआ।

3.3 वैदिक भाषा और लौकिक संस्कृत का भेद

संस्कृत के दो प्रमुख रूप मिलते हैं—

  1. वैदिक संस्कृत – यह वेदों की भाषा थी, जिसमें संगीतमय उच्चारण (स्वराघात) महत्वपूर्ण था।
  2. लौकिक संस्कृत – यह पाणिनि द्वारा व्यवस्थित की गई भाषा थी, जिसे आगे महाकाव्यों और शास्त्रों में प्रयुक्त किया गया।
अथर्ववेद 4.30.3
ब्रह्मणस्पते ते वाचः पतिं पाञ्चजन्यं वर्धयामः।
(हे ब्रह्मणस्पति! हम आपकी वाणी का विस्तार करते हैं, जो पाँच जातियों में फैल चुकी है।)

इससे स्पष्ट है कि वैदिक भाषा समय के साथ विभिन्न रूपों में विकसित हुई और इसे व्यवस्थित करने की आवश्यकता पड़ी।

पाणिनि

4. संस्कृत और अन्य भाषाओं का संबंध

4.1 पाली और प्राकृत भाषाएँ

जब वैदिक उच्चारण कठोर हो गया और जटिल संधियाँ बढ़ गईं, तब आम जनमानस के लिए इसे बोलना कठिन हो गया। इस कारण सरल रूप में पाली और प्राकृत जैसी भाषाएँ विकसित हुईं।

  • पाली – बौद्ध धर्मग्रंथों की भाषा, जिसमें गौतम बुद्ध ने अपने उपदेश दिए।
  • प्राकृत – यह आम जनता की भाषा थी, जिससे आगे हिंदी, बंगाली आदि भाषाएँ विकसित हुईं।
ऋग्वेद 10.71.4
उत त्वः पश्यन् न ददर्श वाचं, उत त्वः श्रृण्वन् न श्रुणोत्येनाम्।
(जो देखते हुए भी वाणी को नहीं समझ पाता, और सुनते हुए भी उसे ग्रहण नहीं कर पाता, वह अज्ञानता में रहता है।)

इससे स्पष्ट होता है कि भाषा का मूल स्वरूप बिगड़ने से उसके भिन्न-भिन्न रूप सामने आए।

पाली और प्राकृत

5. वैदिक ध्वनियों का संरक्षण और भाषा का शुद्धिकरण

5.1 वैदिक उच्चारण की शुद्धता और परंपरा

संस्कृत भाषा की सबसे अनूठी विशेषता इसकी ध्वन्यात्मकता (phonetic accuracy) रही है। वैदिक काल में मंत्रों के शुद्ध उच्चारण को अत्यंत आवश्यक माना गया, क्योंकि ध्वनि का अर्थ, प्रभाव और आध्यात्मिक महत्व इसी पर निर्भर करता था।

संस्कृत भाषा को विकृति से बचाने के लिए वेदों को अलग-अलग पद्धतियों से संरक्षित किया गया—

  • पदपाठः – प्रत्येक शब्द को अलग-अलग उच्चारित करने की परंपरा।
  • क्रमपाठः – दो शब्दों को एक साथ जोड़कर पढ़ने की परंपरा।
  • जटापाठः – शब्दों को आगे-पीछे घुमाकर पढ़ने की परंपरा।
  • घनपाठः – मंत्रों को विशिष्ट ध्वनि तरंगों में संजोने की परंपरा।
तैत्तिरीय उपनिषद् 1.2.3
स्वरतो वर्णतो वा मिथ्या प्रयोक्तारं विदुषां हिनस्ति।
(स्वर या वर्ण के गलत उच्चारण से मंत्र का प्रभाव नष्ट हो जाता है।)

इससे स्पष्ट होता है कि भाषा केवल व्याकरण के नियमों से नहीं, बल्कि ध्वनि विज्ञान से भी जुड़ी थी।

5.2 वैदिक भाषा के स्वरूप को बिगड़ने से बचाने के प्रयास

संस्कृत के शुद्ध उच्चारण को बनाए रखने के लिए विभिन्न आचार्यों ने शिक्षा ग्रंथों की रचना की, जिनमें प्रमुख हैं—

  • पाणिनीय शिक्षा
  • यास्कीय निरुक्त
  • पतंजलि का महाभाष्य

इन ग्रंथों में भाषा की ध्वन्यात्मक संरचना को सहेजने पर विशेष बल दिया गया।

ऋग्वेद 10.125.5
अहं राष्ट्री संगमनी वसूनां, चिकितुषी प्रथमा यज्ञियानाम्।
(मैं राष्ट्र की संगमनी वाणी हूँ, मैं यज्ञों को व्यवस्थित करने वाली शक्ति हूँ।)

यह मंत्र स्पष्ट करता है कि भाषा केवल संचार का माध्यम नहीं थी, बल्कि यह संस्कृति और आध्यात्मिक चेतना का आधार थी।

ध्वनि संरक्षण

6. संस्कृत का आधुनिक भाषाओं पर प्रभाव

6.1 भारत की भाषाओं पर संस्कृत का प्रभाव

संस्कृत से ही अधिकांश भारतीय भाषाओं का विकास हुआ। हिंदी, मराठी, बंगाली, गुजराती, तमिल, कन्नड़, तेलुगु आदि भाषाओं में संस्कृत के शब्द, व्याकरण और ध्वनि संरचना के स्पष्ट प्रभाव देखे जा सकते हैं।

  • हिंदी में लगभग 60% शब्द संस्कृत से लिए गए हैं।
  • मराठी और गुजराती में भी संस्कृत शब्दों की प्रधानता है।
  • दक्षिण भारतीय भाषाएँ (तमिल को छोड़कर) संस्कृत के तत्सम शब्दों से भरपूर हैं।
अथर्ववेद 12.1.45
इयं वाणी प्रथमा ब्राह्मणानाम्।
(यह वाणी ही ब्राह्मणों की पहली संपत्ति है।)

6.2 पश्चिमी भाषाओं पर संस्कृत का प्रभाव

संस्कृत का प्रभाव केवल भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यूनानी, लैटिन और जर्मन भाषाओं पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ा।

उदाहरण के लिए—

संस्कृत लैटिन अंग्रेज़ी
मातृ Mater Mother
पितृ Pater Father
भ्रातृ Frater Brother

इस समानता से यह स्पष्ट होता है कि संस्कृत इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार की मूल भाषा रही होगी।

ऋग्वेद 1.164.39
महि द्यौः पृथिवी च नः।
(आकाश और पृथ्वी हमारे लिए समान रूप से महान हैं।)

यह मंत्र दर्शाता है कि वैदिक संस्कृति का प्रभाव केवल भारतीय उपमहाद्वीप तक सीमित नहीं था।

7. आधुनिक युग में संस्कृत भाषा की स्थिति और पुनर्जीवन के प्रयास

7.1 संस्कृत भाषा का वर्तमान परिदृश्य

संस्कृत आज भी अपनी प्राचीन वैज्ञानिक संरचना के कारण जीवंत है। भले ही इसका दैनिक संचार में उपयोग सीमित हो गया हो, किंतु यह अभी भी वैदिक अध्ययन, शास्त्रीय ग्रंथों, आयुर्वेद, योग, ज्योतिष और दर्शनशास्त्र की मूल भाषा बनी हुई है।

7.2 संस्कृत भाषा के पुनर्जीवन के लिए किए गए प्रयास

संस्कृत को पुनर्जीवित करने के लिए कई प्रयास किए गए हैं:

  • संस्कृत विश्वविद्यालयों की स्थापना
  • संस्कृत भारती और अन्य संस्थाओं का योगदान
  • संस्कृत और आधुनिक प्रौद्योगिकी का संगम

8. भविष्य में संस्कृत का स्थान और संभावनाएँ

8.1 संस्कृत की वैश्विक स्वीकृति

संस्कृत केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि पश्चिमी देशों में भी इसे लेकर उत्सुकता बढ़ रही है।

  • जर्मनी में संस्कृत अध्ययन के 20 से अधिक विश्वविद्यालय हैं।
  • अमेरिका में संस्कृत को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए सबसे उपयुक्त भाषा माना जा रहा है।
  • NASA और अन्य वैज्ञानिक संस्थाएँ संस्कृत को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के लिए श्रेष्ठ भाषा मानती हैं।
अथर्ववेद 12.1.40
यं वै भाषा मनो वेद तं मित्रमाहुः।
(जिस भाषा को मनुष्य का मन समझता है, वही उसका मित्र होती है।)

8.2 निष्कर्ष

संस्कृत केवल एक भाषा नहीं, बल्कि यह भारत की बौद्धिक और आध्यात्मिक विरासत का मूल आधार है। वेदों में संस्कृत शब्द प्रत्यक्ष रूप से नहीं मिलता, किंतु वैदिक ध्वनियों की संरचना, विकास और व्याकरणीय परिष्कार ने इसे ‘संस्कृत’ नाम प्रदान किया।

संस्कृत के पुनर्जागरण के लिए—

  • इसे रोज़मर्रा के जीवन में अपनाना होगा।
  • आधुनिक तकनीक से जोड़ना होगा।
  • युवा पीढ़ी को इसकी वैज्ञानिकता से परिचित कराना होगा।
ऋग्वेद 1.89.1
बृहस्पते अति यदर्यो अर्ज्यं वचः।
(हे बृहस्पति! हमें उत्तम वाणी का वरदान दें।)

संस्कृत के पुनरुत्थान से न केवल हमारी सांस्कृतिक विरासत सहेजी जाएगी, बल्कि विज्ञान, दर्शन और तकनीक में भी नई संभावनाएँ खुलेंगी।


गीवार्णग्रंथभंडारगारम्
आचार्य आशीष मिश्र

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