Sunday, November 3, 2024

NCERT कक्षा दसवीं संस्कृत शेमुषी - मंगलम् श्लोक

NCERT कक्षा दसवीं संस्कृत शेमुषी

मंगलम् श्लोक

विद्यालय का चित्र

श्लोक 1

ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत्। पश्येमशरदः शतं जीवेम शरदः शतं श्रृणुयाम शरदः शतम्। प्रब्रवाम शरद् शतमदीनाः स्याम शरदः शतम् भूयश्यच शरदः शतात्।।

वैयाकरणिक विच्छेद:

ॐ (अव्यय)
तत् (प्रत्यय, 'वह')
चक्षुः (नपुंसकलिंग, 'आँख')
देवहितम् (देव + हित + क्त्वा + एकवचन + नपुंसकलिंग ('देवताओं को प्रिय'))
पुरस्तात् (पुरस् + आत् + षष्ठी विभक्ति एकवचन ('आगे से'))
शुक्रम् (नपुंसकलिंग, 'शुक्र ग्रह')
उच्चरत् (उच्च् + लट् + प्रथम पुरुष एकवचन ('चमक रहा है'))
पश्येम (पश्य + लट् + प्रथम पुरुष बहुवचन ('हम देखें'))
शरदः (शरद + नाम + षष्ठी विभक्ति बहुवचन ('वर्षों के'))
शतम् (शत + नपुंसकलिंग, 'सौ')
जीवेम (जीव + लट् + प्रथम पुरुष बहुवचन ('हम जीवित रहें'))
शरदः (शरद + नाम + षष्ठी विभक्ति बहुवचन ('वर्षों के'))
शतम् (शत + नपुंसकलिंग, 'सौ')
श्रृणुयाम (श्रु + लट् + प्रथम पुरुष बहुवचन ('हम सुनें'))
शरदः (शरद + नाम + षष्ठी विभक्ति बहुवचन ('वर्षों के'))
शतम् (शत + नपुंसकलिंग, 'सौ')
प्रब्रवाम (ब्रू + लट् + प्रथम पुरुष बहुवचन ('हम बोलें'))
शरद् (शरद + नाम + षष्ठी विभक्ति एकवचन ('वर्ष के'))
शतम् (शत + नपुंसकलिंग, 'सौ')
अदीनाः (अदीन् + क्त्वा + बहुवचन ('अमर रहने वाले'))
स्याम (अस + लट् + प्रथम पुरुष बहुवचन ('हम हों'))
शरदः (शरद + नाम + षष्ठी विभक्ति बहुवचन ('वर्षों के'))
शतम् (शत + नपुंसकलिंग, 'सौ')
भूयश्यच (भूयः + अच ('अधिक' + 'और'))
शरदः (शरद + नाम + षष्ठी विभक्ति बहुवचन ('वर्षों से'))
शतात् (शत + नाम + षष्ठी विभक्ति एकवचन ('सौ से'))

अन्वय:

ॐ वह चक्षु, देवताओं के लिए प्रिय, हमारे सामने शुक्र चमक रहा है। हम सौ वर्षों के वर्षों तक देखें, हम सौ वर्षों के वर्षों तक जीवित रहें, हम सौ वर्षों के वर्षों तक सुनें। हम सौ वर्ष के वर्ष तक बोलें, हम सौ वर्षों के वर्षों तक अमर रहने वाले हों, और सौ वर्षों से भी अधिक समय तक जीवित रहें।

भावार्थ:

यह श्लोक शुक्र ग्रह को देखकर दीर्घायु और स्वास्थ्य की कामना करता है। इसमें कवि प्रार्थना करता है कि वे सौ वर्षों तक देखें, सुनें, बोलें, और अमरता प्राप्त करें। यह श्लोक जीवन की पूर्णता और सार्थकता की कामना करता है, जिसमें शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ बुद्धि और ज्ञान का विकास भी शामिल है।

श्लोक 2

ॐ आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरितासउद्भिदः। देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे॥

वैयाकरणिक विच्छेद:

ॐ (अव्यय)
आ (अव्यय)
नो (नः (स्वस्तृ + अ))
भद्राः (भद्र + आः (प्रत्यय))
क्रतवो (क्रतु + ओ (प्रत्यय))
यन्तु (यन् (धातु) + लट् + तृतीय पुरुष बहुवचन)
विश्वतः (विश्वत् (प्रत्यय) + तः (प्रत्यय) + षष्ठी विभक्ति एकवचन)
अदब्धासो (अ (उपसर्ग) + दब्ध (धातु) + क्त्वा + एकवचन + स्त्री)
अपरितासउद्भिदः (अपरि (उपसर्ग) + रित (धातु) + क्त्वा + एकवचन + स्त्री )
देवा (देव (पुंलिंग) + आः (प्रत्यय))
नो (नः (स्वस्तृ + अ))
यथा (अव्यय)
सदमिद् (सदमि (धातु) + इत् (प्रत्यय))
वृधे (वृध (धातु) + ए (प्रत्यय) + षष्ठी विभक्ति एकवचन)
असन्नप्रायुवो (असन्‍न (उपसर्ग) + प्रायु (धातु) + क्त्वा + बहुवचन + स्त्री)
रक्षितारो (रक्षितार (पुंलिंग) + ओ (प्रत्यय))
दिवे (दिव (पुंलिंग) + ए (प्रत्यय) + षष्ठी विभक्ति एकवचन)
दिवे (दिव (पुंलिंग) + ए (प्रत्यय) + षष्ठी विभक्ति एकवचन)

अन्वय:

ॐ आ नः भद्राः क्रतवो विश्वतो यन्तु अदब्धासो अपरितासउद्भिदः। देवाः नः यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे॥

भावार्थ:

यह ऋग्वेद का एक प्रसिद्ध मंत्र है जो सर्वव्यापी भलाई की कामना करता है। * **पहला पद:** हे भगवान! हमारे पास सभी दिशाओं से अच्छे कर्म आएं, जो अनिर्बंधित और अपरिमित लाभ देने वाले हों। * **दूसरा पद:** देवता हमें यथा (जैसे) हमारा पालन-पोषण करते रहें, जैसे वे हमारे सबका भला करते हैं, जैसे वे हमेशा सुरक्षित रहें। यह मंत्र हमें सुरक्षा, समृद्धि, और प्रगति की कामना करता है।

विशेष नोट:

उपरोक्त श्लोकों के अर्थ की व्याख्या वेदों के विद्वानों द्वारा की गई है। ऋग्वेद के व्याख्या के लिए "सायण भाष्य", "महाभारती", और अन्य विद्वानों के ग्रन्थ महत्वपूर्ण हैं।

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